Bhartendu Harishchandra
( 1850 - 1885 )

Bhartendu Harishchandra (Hindi: भारतेन्दु हरिश्चंद्र) is known as the father of modern Hindi literature as well as Hindi theatre. He is considered one of the greatest Hindi writers of modern India. A recognised poet, he was a trendsetter in Hindi prose-writing. He was an author of several dramas, life sketches and travel accounts; he used new media like reports, publications, letters to the editor, translations and literary works to shape public opinion. More

उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले इधर तो देखिए बहर-ए-ख़ुदा किधर को चले मिरी निगाहों में दोनों जहाँ हुए तारीक ये आप खोल के ज़ुल्फ़-ए-दोता किधर को चले...

फिर आई फ़स्ले गुल फिर जख़्मदह रह-रह के पकते हैं। मेरे दागे जिगर पर सूरते लाला लहकते हैं। नसीहत है अबस नासेह बयाँ नाहक ही बकते हैं। जो बहके दुख्तेरज से हैं वह कब इनसे बहकते हैं?...

ख़याले नावके मिजगाँ में बस हम सर पटकते हैं। हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ारे ग़म खटकते हैं। रुख़े रौशन पै उसके गेसुए शबगूँ लटकते हैं। कयामत है मुसाफ़िर रास्तः दिन को भटकते हैं।...

अजब जोबन है गुल पर आमदे फ़स्ले बहारी है। शिताब आ साकिया गुलरू कि तेरी यादगारी है। रिहा करता है सैयादे सितमगर मौसिमे गुल में। असीराने कफ़स लो तुमसे अब रुख़सत हमारी है।...

कहाँ करुणानिधि केशव सोये। जागत नेक न जदपि बहु बिधि भारतवासी रोए॥ इक दिन वह हो जब तुम छिन नहिं भारतहित बिसराए। इत के पशु गज को आरत लखि आतुर प्यादे धाए॥...

कैसी होरी खिलाई। आग तन-मन में लगाई॥ पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई। पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥...

मेरे नयना भये चकोर अनुदिन निरखत श्याम चन्द्रमा सुन्दर नंदकिशोर तनिक भये वियोग उर बाढ़त बहु बिधि नयन मरोर होत न पल की ओट छिनकहूँ रहत सदा दृग जोर...

वह अपनी नाथ दयालुता तुम्हें याद हो कि न याद हो वह जो कौल भक्तों से था किया तुम्हें याद हो कि न याद हो व जो गीध था गनिका व थी व जो व्याध था व मलाह था इन्हें तुमने ऊंचों की गति दिया तुम्हें याद हो कि न याद हो...

लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो। सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥ लहँगा दुपट्टा नीको न लागै। मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।...

तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी ! इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनो जोरा जोरी ! छोड़ि देई कि बंद चोलिया, पकरैं चोर हम अपनो री ! "हरीचन्द" इन दोउन मेरी, नाहक कीनी चितचोरी !...