ग़ज़ब है सुरमः देकर आज वह बाहर निकलते हैं।
अभी से कुछ दिल मुज़्तर पर अपने तीर चलते हैं।
ज़रा देखो तो ऐ अहले सखुन ज़ोरे सनाअत को।
नई बंदिश है मजमूँ नूर के साँचें में ढलते हैं।
बुरा हो इश्क का यह हाल है अब तेरी फ़ुर्कत में।
कि चश्मे खूँ चकाँ से लख़्ते दिल पैहम निकलते हैं।
हिला देंगे अभी हे संगे दिल तेरे कलेजे को।
हमारी आहे आतिश-बार से पत्थर पिघलते हैं।
तेरा उभरा हुआ सीना जो हमको याद आता है।
तो ऐ रश्के परी पहरों कफ़े अफ़सोस मलते हैं।
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक को तेरे।
तड़फते हैं फ़ुगाँ करते हैं औ करवट बदलते हैं।
'रसा' हाजत नहीं कुछ रौशनी की कुंजे मर्कद में।
बजाये शमा याँ दागे जिगर हर वक़्त जलते हैं।