फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया
फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया वाजिब इस जा पर क़लम को सर झुकाना हो गया सर-कशी इतनी नहीं ज़ालिम है ओ ज़ुल्फ़-ए-सियह बस कि तारीक अपनी आँखों में ज़माना हो गया ध्यान आया जिस घड़ी उस के दहान-ए-तंग का हो गया दम बंद मुश्किल लब हिलाना हो गया ऐ अज़ल जल्दी रिहाई दे न बस ताख़ीर कर ख़ाना-ए-तन भी मुझे अब क़ैद-ख़ाना हो गया आज तक आईना-वश हैरान है इस फ़िक्र में कब यहाँ आया सिकंदर कब रवाना हो गया दौलत-ए-दुनिया न काम आएगी कुछ भी ब'अद-ए-मर्ग है ज़मीं में ख़ाक क़ारूँ का ख़ज़ाना हो गया बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर एक साअत में तह-ओ-बाला ज़माना हो गया देख ली रफ़्तार उस गुल की चमन में क्या सबा सर्व को मुश्किल क़दम आगे बढ़ाना हो गया जान दी आख़िर क़फ़स में अंदलीब-ए-ज़ार ने मुज़्दा है सय्याद वीराँ आशियाना हो गया ज़िंदा कर देता है इक दम में ये ईसा-ए-नफ़स खेल इस को गोया मुर्दे को जिलाना होगा तौसन-ए-उम्र-ए-रवाँ दम भर नहीं रुकता 'रसा' हर नफ़स गोया उसी का ताज़ियाना हो गया

Read Next