वह अपनी नाथ दयालुता
वह अपनी नाथ दयालुता तुम्हें याद हो कि न याद हो वह जो कौल भक्तों से था किया तुम्हें याद हो कि न याद हो व जो गीध था गनिका व थी व जो व्याध था व मलाह था इन्हें तुमने ऊंचों की गति दिया तुम्हें याद हो कि न याद हो जिन बानरों में न रूप था न तो गुन हि था न तो जात थी उन्हें भाइयो का सा मानना तुम्हें याद हो कि न याद हो खाना भील के वे जूठे फल, कहीं साग दास के घर पै चल यूँही लाख किस्से कहूं मैं क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो कहो गोपियों से कहा था क्या, करो याद गीता की भी जरा वानी वादा भक्त - उधार का तुम्हें याद हो कि न याद हो या तुम्हारा ही `हरिचंद´ है गो फसाद में जग के बंद है है दास जन्मों का आपका तुम्हें याद हो कि न याद हो

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