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गरज-तरज कर कहा एक वक्ता ने उस दिन "बुनियादी तालीम त्यागियों की शिक्षा है।" मैं कहता हूँ, अरे त्यागियों! मुझे बता दो, कौन पिता ऐसा है जो अपने बच्चे को...

क्रान्तिकारी मैं जवानी भर न हो पाया, सिर्फ इस भय से, कहीं मैं भी बुढ़ापे में क्रान्ति में फँसकर न दकियानूस हो जाऊँ।...

तिमिर में स्वर के बाले दीप, आज फिर आता है कोई। ’हवा में कब तक ठहरी हुई रहेगी जलती हुई मशाल? थकी तेरी मुट्ठी यदि वीर,...

मृत्यु-भीत शत-लक्ष मानवों की करुणार्द्र पुकार! ढह पड़ना था तुम्हें अरी ! ओ पत्थर की दीवार! निष्फल लौट रही थी जब मरनेवालों की आह, दे देनी थी तुम्हें अभागिनि, एक मौज को राह ।...

आत्मा की है आँख, बुद्धि की पाँख है, मानस की चाँदनी विमल है कल्पना।...

फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना, गुण न वह इस बाँसुरी की तान में; जो चकित करके कॅंपा डाले हृदय, वह कला पाई न मैंने गान में।...

तेरा वास गगन-मंडल पर, मेरा वास भुवन में, तू विरक्त, मैं निरत विश्व में, तू तटस्थ, मैं रण में। तेरी-मेरी निभे कहाँ तक, ओ आकाश प्रवासी? मैं गृहस्थ सबका दुख-भोगी, तू अलिप्त संन्यासी।...

पहली पंक्ति लिखी विधि ने जिस दिन कविता की, उस दिन पहला वृक्ष स्वयं उत्पन्न हो गया। प्रथम काव्य है वृक्ष विश्व के पहले कवि का। द्रुमों को प्यार करता हूँ।...

देख रहे हो जो कुछ उसमें भी सब का मत विश्वास करो, सुनी हुई बातें तो केवल गूँज हवा की होती हैं।...

मेल बैठता नहीं सदा दर्शन-जीवन का। कहते हैं, आलस्य बड़ा भारी दुर्गुण है। किन्तु, आलसी हुए बिना कब सुख मिलता है? और मोददायिनीं वस्तुएँ सभी व्यर्थ हैं।...

युद्ध की इति हो गई; रण-भू श्रमित, सुनसान; गिरिशिखर पर थम गया है डूबता दिनमान-- देखते यम का भयावह कृत्य, अन्ध मानव की नियति का नृत्य;...

सन्त की बातें बहुत कर सत्य होती हैं। एक का तो साक्ष्य किंचित हम स्वयं भरते; उन्हें भी निन्दा-श्रवण में रस उपजता है, जो किसी की भी स्वयं निन्दा नहीं करते।...

दूर देश के अतिथि व्योम में छाए घन काले सजनी, अंग-अंग पुलकित वसुधा के शीतल, हरियाले सजनी!...

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुए विनत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही।...

अरी ओ रसवन्ती सुकुमार ! लिये क्रीड़ा-वंशी दिन-रात पलातक शिशु-सा मैं अनजान, कर्म के कोलाहल से दूर ...

सिमट विश्व-वेदना निखिल बज उठी करुण अन्तर में, देव ! हुंकरित हुआ कठिन युगधर्म तुम्हारे स्वर में। काँटों पर कलियों, गैरिक पर किया मुकुट का त्याग किस सुलग्न में जगा प्रभो ! यौवन का तीव्र विराग ?...

शब्द जो निःशब्द, नीरव हैं, समय पाकर वही परिपक्व होते हैं। घूर्णि जब आती नहीं दिन भर ठहरती है। और वह वर्षा नहीं भरती सरोवर को,...

भीरु पूर्व से ही डरता है, कायर भय आने पर, किन्तु, साहसी डरता भय का समय निकल जाने पर। संकट से बचने की जो है राह, वह संकट के भीतर से जाती है।...

प्रत्येक नया दिन नयी नाव ले आता है, लेकिन, समुद है वही, सिन्धु का तीर वही। प्रत्येक नया दिन नया घाव दे जाता है, लेकिन, पीड़ा है वही, नयन का नीर वही।...

विनोबा रात-दिन बेचैन होकर चल रहे हैं, अभी हैं भींगते पथ में, अभी फिर जल रहे हैं। हमीं हैं खूब संध्या को निकल संसद-भवन से किन्हीं रंगीनियों के पास मग्न टहल रहे हैं।...

शतदल, मृदुल जीवन-कुसुम में प्रिय! सुरभि बनकर बसो। घन-तुल्य हृदयाकाश पर मृदु मन्द गति विचरो सदा। प्रियतम! कहूँ मैं और क्या? दृग बन्द हों तब तुम सुनहले स्वप्न बन आया करो,...

पंथ लौट कर पहुँचेगा फिर वहाँ जहाँ से शुरू हुआ था। घर जाने के लिए बहुत आतुर मत होओ। बहुत तेज मत चलो, न ठहरो, यही बहुत है।...

क्योंकि युधिष्ठिर एक, सुयोधन अगणित अभी यहाँ हैं, बढे़ शान्ति की लता हाय, वे पोषक द्रव्य कहाँ हैं?...

लिख रहे गीत इस अंधकार में भी तुम रवि से काले बरछे जब बरस रहे हैं, सरिताएँ जम कर बर्फ हुई जाती हैं, जब बहुत लोग पानी को तरस रहे हैं?...

कहते हैं, दो नौजवान क्षत्रिय घोड़े दौड़ाते, ठहरे आकर बादशाह के पास सलाम बजाते।...

जब साहित्य पढ़ो तब पहले पढ़ो ग्रन्थ प्राचीन, पढ़ना हो विज्ञान अगर तो पोथी पढ़ो नवीन।...

वय की गभीरता से मिश्रित यौवन का आदर होता है, वार्द्धक्य शोभता वह जिसमें जीवित हो जोश जवानी का। जवानी का समय भी खूब होता है, थिरकता जब उँगलियों पर गगन की आँख का सपना,...

विश्व में दुःशान्ति यह क्यों छा रही है? आग पर क्यों आग लगती जा रही है? एक है कारण कि जो है मूर्ख वह तो हर विषय में ठीक निज को ही समझता है।...

ओ भारत की भूमि वन्दिनी! ओ जंजीरोंवाली! तेरी ही क्या कुक्षि फाड़ कर जन्मी थी वैशाली? वैशाली! इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का, वैशाली! अतीत गह्वर में गुंजन तलवारों का।...

जर्जरवपुष्‌! विशाल! महादनुज! विकराल! भीमाकृति! बढ़, बढ़, कबन्ध-सा कर फैलाए; लील, दीर्घ भुज-बन्ध-बीच जो कुछ आ पाए।...

देशभक्ति किसकी सबसे उत्तम है? उसकी जो गाता स्वदेश की उत्तमता का गान नहीं, किन्तु, उसे उत्तम से उत्तम रोज बनाये जाता है।...

सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं। निज सागर को थाह रहा हूँ, खोज गीत में राह रहा हूँ, पर, यह तो सब कुछ अपने हित, औरों को समझा न रहा मैं।...

"जेरेमिया" अवतार थे, वे दूत थे प्रभु के। रहे वे किन्तु, जीवन भर विलपते, शीश धुनते ही। तुम्हें मालूम है, क्यों वे बिचारे शीश धुनते थे? उन्हें था ज्ञात, मैंने आग से जो कुछ लिखा है,...

निज वातायन से तुम्हें देखता मैं बेसुध, जब-जब तुम रेलिंग पकड़ खड़ी हो जाती हो, चाँदनी तुम्हारी खिड़की पर थिरकी फिरती, तुम किसी और के सपने में मँडराती हो।...

शादी वह नाटक अथवा वह उपन्यास है, जिसका नायक मर जाता है पहले ही अध्याय में। शादी जादू का वह भवन निराला है, जिसके भीतर रहने वाले निकल भागना चाहते,...

तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ? एक बात है मुझे पूछनी, फूल बनोगे या पत्थर ?...

विश्व में सबसे वही हैं वीर, है जिन्होंने आप अपने को गढ़ा। और वे ज्ञानी अगम गंभीर, है जिन्होंने आप अपने से पढ़ा।...

जय विधायिके अमर क्रान्ति की! अरुण देश की रानी! रक्त-कुसुम-धारिणि! जगतारिणि! जय नव शिवे! भवानी! अरुण विश्व की काली, जय हो, लाल सितारोंवाली, जय हो,...

अहंकार के साथ घृणा का जहाँ द्वंद हो जारी; ऊपर, शान्ति, तलातल में हो छिटक रही चिंगारी;...

क्या पूछा, है कौन श्रेष्ठ सहधर्मिणी? कोई भी नारी जिसका पति श्रेष्ठ हो। कई लोग नारी-समाज की निन्दा करते रहते हैं। मैं कहता हूँ, यह निन्दा है किसी एक ही नारी की।...