विनोबा
विनोबा रात-दिन बेचैन होकर चल रहे हैं, अभी हैं भींगते पथ में, अभी फिर जल रहे हैं। हमीं हैं खूब संध्या को निकल संसद-भवन से किन्हीं रंगीनियों के पास मग्न टहल रहे हैं।

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