नये सुभाषित / वातायन
निज वातायन से तुम्हें देखता मैं बेसुध, जब-जब तुम रेलिंग पकड़ खड़ी हो जाती हो, चाँदनी तुम्हारी खिड़की पर थिरकी फिरती, तुम किसी और के सपने में मँडराती हो।

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