Ramdhari Singh Dinkar
Dinkar
( 1908 - 1974 )

Ramdhari Singh 'Dinkar' (Hindi: रामधारी सिंह "दिनकर") was an Indian Hindi poet, essayist, patriot and academic, who is considered as one of the most important modern Hindi poets. He remerged as a poet of rebellion as a consequence of his nationalist poetry written in the days before Indian independence. His poetry exuded veer rasa, and he has been hailed as a Rashtrakavi ("National poet") on account of his inspiring patriotic compositions. He was a regular poet of Hindi Kavi sammelan on those days and is hailed to be as popular and connected to poetry lovers for Hindi speakers as Pushkin for Russians. More

लेन-देन का हिसाब लंबा और पुराना है। जिनका कर्ज हमने खाया था, उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।...

हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ? हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ? यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ? दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।...

किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो ? किस नयी फसल के बीज वीर ! बोते हो ? दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम; यम की दंष्ट्रा से खेल झूलते हैं हम।...

गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ? शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ? उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था, तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;...

हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। हर ज़िन्दगी किसी न किसी ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।...

घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन, जब मैं बालक अबोध अनजान था। यह पवन तुम्हारी साँस का सौरभ लाता था।...

जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल।...

हृदय छोटा हो, तो शोक वहां नहीं समाएगा। और दर्द दस्तक दिये बिना दरवाजे से लौट जाएगा।...

निर्मम नाता तोड़ जगत का अमरपुरी की ओर चले, बन्धन-मुक्ति न हुई, जननि की गोद मधुरतम छोड़ चले। जलता नन्दन-वन पुकारता, मधुप! कहाँ मुँह मोड़ चले? बिलख रही यशुदा, माधव! क्यों मुरली मंजु मरोड़ चले?...

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार; पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार। भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम; बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम।...