निन्दा
सन्त की बातें बहुत कर सत्य होती हैं। एक का तो साक्ष्य किंचित हम स्वयं भरते; उन्हें भी निन्दा-श्रवण में रस उपजता है, जो किसी की भी स्वयं निन्दा नहीं करते। सब जिसकी निन्दा करते हैं, उसमें भी कुछ गुण हैं, सब सराहते जिसे, बड़े उसमें भी कुछ दुर्गुण हैं।

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