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दाँई बाँई ओर, सामने पीछे निश्चित नहीं सूझता कुछ भी बहिरंतर तमसावृत! हे आदित्यो मेरा मार्ग करो चिर ज्योतित धैर्य रहित मैं भय से पीड़ित अपरिपक्व चित!...

बरसो हे घन! निष्फल है यह नीरव गर्जन, चंचल विद्युत् प्रतिभा के क्षण बरसो उर्वर जीवन के कण...

राह में यों मत चल, ख़ैयाम, डरें सब, करें सलाम! न मसजिद ही में तुझे इमाम बनाएँ, सुनें कलाम!...

मनुज कुछ, धन में जिनके प्राण, जिन्हें निज नृप कुल का अभिमान! उमर कुछ वे, जो विद्यावान, चाहते यश पूजन सम्मान!...

स्वर्ण बालुका किसने बरसा दी रे जगती के मरुथल मे, सिकता पर स्वर्णांकित कर स्वर्गिक आभा जीवन मृग जल में! स्वर्ण रेणु मिल गई न जाने कब धरती की मर्त्य धूलि से, चित्रित कर, भर दी रज में नव जीवन ज्वाला अमर तूलि से!...

रूप-तारा तुम पूर्ण प्रकाम; मृगेक्षिणि! सार्थक नाम। एक लावण्य-लोक छबिमान, नव्य-नक्षत्र समान,...

आते कैसे सूने पल जीवन में ये सूने पल! जब लगता सब विशृंखल, तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल। ...

तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम, भरा जामे जमशेद! घिरा मदिरा का फेन ललाम, बदन पर रति सुख स्वेद!...

झर गई कली, झर गई कली! चल-सरित-पुलिन पर वह विकसी, उर के सौरभ से सहज-बसी, सरला प्रातः ही तो विहँसी,...

वह हृदय नहीं जिसमें प्रियतम की चाह नहीं! वह प्रणय नहीं जिसमें विरहानल दाह नहीं!...

आज देवियों को करता मन भूरि रे नमन चिन्मयि सृजन शक्तियाँ जो करतीं जगत सृजन! माहेश्वरी महेश्वर के संदेश को वहन लक्ष्मी श्री सौन्दर्य विभव को करती वितरण!...

सौ सौ धर्मान्धों से बढ़कर पूत एक मदिरा का जाम, चीन देश से भी अमूल्य रे मधु का फैला फेन ललाम!...

पाप न कर ख़ैयाम, पाप कर मत कर पश्चाताप! व्यर्थ ग्लानि संताप न इससे मिटता उर का ताप!...

‘तुम निर्बल हो, सबसे निर्बल!’ बोला माधव! ‘मैं निर्बल हूँ औ’ युग के निर्बल का संबल,’ बोला यादव,...

जीवन का उल्लास,-- यह सिहर, सिहर, यह लहर, लहर, यह फूल-फूल करता विलास!...

पुष्प वृष्टि हो, नव जीवन सौन्दर्य सृष्टि हो, जो प्रकाश वर्षिणी दृष्टि हो! लहरों पर लोटें नव लहरें...

ढालता रहता वह अविराम, उमर पात्रों में मदिराधार, सुनहले स्वप्नों का मधु फेन हृदय में उठता बारंबार!...

संध्या का गहराया झुट पुट भीलों का सा धरे सिर मुकुट हरित चूड़ कुकड़ू कूँ कुक्कुट एक टाँग पर तुले, दीर्घतर...

मिट्टी से भी मटमैले तन, अधफटे, कुचैले, जीर्ण वसन,-- ज्यों मिट्टी के हों बने हुए ये गँवई लड़के—भू के धन!...

वसुधा के सागर से उठता जो वाष्प भार बरसता न वसुधा पर बन उर्वर वृष्टि धार,...

आज रहने दो यह गृह-काज, प्राण! रहने दो यह गृह-काज! आज जाने कैसी वातास छोड़ती सौरभ-श्लथ उच्छ्वास,...

यदि जीवन संग्राम नाम जीवन का, अमृत और विष ही परिणाम उदधि मंथन का...

तेरी क़ातिल असि से मेरा साक़ी, जो कट जाए सर नयनों के घन भी बरसाएँ रुधिर अश्रुओं की जो झर!...

मेरा प्रतिपल सुन्दर हो, प्रतिदिन सुन्दर, सुखकर हो, यह पल-पल का लघु-जीवन सुन्दर, सुखकर, शुचितर हो!...

नवल हर्षमय नवल वर्ष यह, कल की चिन्ता भूलो क्षण भर; लाला के रँग की हाला भर प्याला मदिर धरो अधरों पर!...

झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के। चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के, थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।...

हुआ इस जग में ऐसा कौन विषय रस किया न जिसने पान? मिला ऐसा निर्मल न स्वभाव रहा अघ से जो चिर अनजान!...

बाँध दिए क्यों प्राण प्राणों से! तुमने चिर अनजान प्राणों से!...

नवल मेरे जीवन की डाल बन गई प्रेम-विहग का वास! आज मधुवन की उन्मद वात हिला रे गई पात-सा गात,...

मेरी आत्मा जो कि तुम्हारी प्रीति सुरा की पीती धार, भटक रही किस रोष दोष वश वह इस जग में बारंबार!...

बाहर भीतर ऊपर नीचे जुटा अनंत समाज, मायामय की रंग भूमि में छाया-अभिनय आज!...

छेड़ो हे वह गान अंतत्तोद्भव अकल्प वह गान विश्व ताप से शून्य गह्वरों में गिरि के अम्लान निभृत अरण्य देशों में जिसका शुचि जन्म स्थान जिनकी शांति न कनक काम यश लिप्सा का निःश्वास...

स्वाभाविक नारी जन की लज्जा से वेष्टित, नित कर्म निष्ठ, अंगो की हृष्ट पुष्ट सुन्दर, श्रम से हैं जिसके क्षुधा काम चिर मर्यादित, वह स्वस्थ ग्राम नारी, नर की जीवन सहचर।...

मेघों की गुरु गुहा सा गगन वाष्प बिन्दु का सिंधु समीरण! विद्युत् नयनों को कर विस्मित स्वर्ण रेख करती हँस अंकित...

निःस्वर वाणी नीरव मर्म कहानी! अंतर्वाणी! नव जीवन सौन्दर्य में ढलो...

धर्म वंचकों को यदि मुझसे कभी मित्रता हो स्वीकार वे मेरे दुःखों के बदले इतना मात्र करें उपकार,--...

बंधन बन रही अहिंसा आज जनों के हित, वह मनुजोचित निश्चित, कब? जब जन हों विकसित। भावात्मक आज नहीं वह; वह अभाव वाचक: उसका भावात्मक रूप प्रेम केवल सार्थक।...

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र! हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण! हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत, तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन!! ...

एक धूप का हँसमुख टुकड़ा तरु के हरे झरोखे से झर अलसाया है धरा धूल पर चिड़िया के सफ़ेद बच्चे सा!...

तप रे, मधुर मन! विश्व-वेदना में तप प्रतिपल, जग-जीवन की ज्वाला में गल, बन अकलुष, उज्जवल औ' कोमल ...