तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम
तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम, भरा जामे जमशेद! घिरा मदिरा का फेन ललाम, बदन पर रति सुख स्वेद! निछावर करना तुम पर प्राण तोड़ जीवन के बंध, प्रतीक्षा में रहना प्रतियाम-- यही स्वर्गिक आनंद! तुम्हारे चरणों पर हो माथ, मात्र उर की अभिलाष! तुम्हारे पद रज कण में, नाथ, भरा शत सूर्य प्रकाश!

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