बाहर भीतर ऊपर नीचे
बाहर भीतर ऊपर नीचे जुटा अनंत समाज, मायामय की रंग भूमि में छाया-अभिनय आज! इंद्रजाल का खेल हो रहा, दीप सूर्य, ग्रह, चाँद, स्वप्नाविष्ट खेलते सब जन यहाँ सहर्ष विषाद!

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