भावोन्मेष
पुष्प वृष्टि हो, नव जीवन सौन्दर्य सृष्टि हो, जो प्रकाश वर्षिणी दृष्टि हो! लहरों पर लोटें नव लहरें लाड़ प्यार की पागलपन की नव जीवन की, नव यौवन की! मोती की फुहार सी छहरें प्राणों के सुख की, भावों की, सहज सुरुचि की चित चावों की! इन्द्रधनुष सी आभा फहरे स्वप्नों की, सौन्दर्य सृजन की, आशा की, नव प्रणय मिलन की! लहरों पर लोटें नव लहरें! कूक उठे प्राणों में कोयल! नव्य मंजरित हो जन जीवन, नवल पल्लवित जग के दिशि क्षण, नव कुसुमित मानव के तन मन! बहे मलय साँसों में चंचल! जीवन के बंधन खुल जाएँ मनुजों के तन मन धुल जाएँ, जन आदर्शों पर तुल जाएँ, खिले धरा पर जीवन शतदल कूक उठे फिर कोयल! युग प्रभात हो अभिनव! सत्य निखिल बन जाय कल्पना, मिथ्या जग की मिटे जल्पना, कला धरा पर रचे अल्पना, रुके युगों का जन रव! प्रीति प्रतीति भरे हों अंतर विनय स्नेह सहृदयता के सर, जीवन स्वप्नों से दृग सुन्दर, सब कुछ हो फिर संभव। जाति पाँति की कड़ियाँ टूटें मोह द्रोह मद मत्सर छूटें जीवन के नव निर्झर फूटें वैभव बने पराभव युग प्रभात हो अभिनव!

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