आते कैसे सूने पल
आते कैसे सूने पल जीवन में ये सूने पल! जब लगता सब विशृंखल, तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल। खो देती उर की वीणा झंकार मधुर जीवन की, बस साँसों के तारों में सोती स्मृति सूनेपन की। बह जाता बहने का सुख, लहरों का कलरव, नर्तन, बढ़ने की अति-इच्छा में जाता जीवन से जीवन। आत्मा है सरिता के भी, जिससे सरिता है सरिता; जल जल है, लहर लहर रे, गति गति, सृति सृति चिर-भरिता। क्या यह जीवन? सागर में जल-भार मुखर भर देना! कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा- ब्रीड़ा से तनिक ने लेना? सागर-संगम में है सुख, जीवन की गति में भी लय; मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण जीवन-लय से हों मधुमय।

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