ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं अभी से कुछ दिल-ए-मुज़्तर पर अपने तीर चलते हैं ज़रा देखो तो ऐ अहल-ए-सुख़न ज़ोर-ए-सनाअत को नई बंदिश है मजनूँ नूर के साँचे में ढलते हैं...
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में बुझे दिल की लगी भी तो ऐ मेरे यार होली में नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में...
ये कह दो बस मौत से हो रुख़्सत क्यूँ नाहक़ आई है उस की शामत कि दर तलक वो मसीह-ख़सलत मिरी अयादत को आ चुके हैं...
सीटी देकर पास बुलावै। रुपया ले तो निकट बिठावै ॥ लै भागै मोहि खेलहिं खेल। क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि रेल ॥...
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है उसी का सब है जल्वा जो जहाँ में आश्कारा है...
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ ये दाग़ कलेजे पे उठाना नहीं अच्छा...
बँसुरिआ मेरे बैर परी। छिनहूँ रहन देति नहिं घर में, मेरी बुद्धि हरी। बेनु-बंस की यह प्रभुताई बिधि हर सुमति छरी। ’हरीचंद’ मोहन बस कीनो, बिरहिन ताप करी॥...
ब्रज के लता पता मोहिं कीजै गोपी पद-पंकज पावन की रज जामै सिर भीजै आवत जात कुंज की गलियन रूप-सुधा नित पीजै श्री राधे राधे मुख यह बर हरीचन्द को दीजै...
सखी हम काह करैं कित जायं . बिनु देखे वह मोहिनी मूरति नैना नाहिं अघायँ बैठत उठत सयन सोवत निस चलत फिरत सब ठौर नैनन तें वह रूप रसीलो टरत न इक पल और...
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया ऐ फ़लक क्या क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया बाग़बाँ है चार दिन की बाग़-ए-आलम में बहार फूल सब मुरझा गए ख़ाली बयाबाँ रह गया...
किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को दिल-ए-मुज़्तर तड़पता है निहायत बे-क़रारी है...
असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं भला बुलबुल पे यूँ भी ज़ुल्म ऐ सय्याद करते हैं कमर का तेरे जिस दम नक़्श हम ईजाद करते हैं तो जाँ फ़रमान आ कर मअ'नी ओ बहज़ाद करते हैं...
ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ार-ए-ग़म खटकते हैं रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं...
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया। ऐ फ़लक क्या-क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया। बाग़बाँ है चार दिन की बाग़े आलम में बहार। फूल सब मुरझा गए खाली बियाबाँ रह गया।...
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में...
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं...
चूरन अलमबेद का भारी, जिसको खाते कृष्ण मुरारी॥ मेरा पाचक है पचलोना, जिसको खाता श्याम सलोना॥ चूरन बना मसालेदार, जिसमें खट्टे की बहार॥ मेरा चूरन जो कोई खाए, मुझको छोड़ कहीं नहि जाए॥...
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम। स्टारार्थी लभते स्टारम् मोक्षार्थी लभते गतिं॥ एक कालं द्विकालं च त्रिकालं नित्यमुत्पठेत। भव पाश विनिर्मुक्त: अंग्रेज लोकं संगच्छति॥...
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में...
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। झुके कूल सों जल-परसन हित मनहु सुहाये॥ किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा। कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥...
नींद आती ही नहीं धड़के की इक आवाज़ से। तंग आया हूँ मैं इस पुरसोज दिल के साज़ से॥...
सुनौ सखि बाजत है मुरली। जाके नेंक सुनत ही हिअ में उपजत बिरह-कली। जड़ सम भए सकल नर, खग, मृग, लागत श्रवन भली। ’हरीचंद’ की मति रति गति सब धारत अधर छली॥...
हरि को धूप-दीप लै कीजै। षटरस बींजन विविध भाँति के नित नित भोग धरीजै। दही, मलाई, घी अरु माखन तापो पै लै दीजै। ’हरीचंद’ राधा-माधव-छबि, देखि बलैंया लीजै॥...
सखी री ठाढ़े नंदकिसोर। वृंदाबन में मेहा बरसत, निसि बीती भयो भोर। नील बसन हरि-तन राजत हैं, पीत स्वामिनी मोर। ’हरीचंद’ बलि-बलि ब्रज-नारी, सब ब्रजजन-मनचोर॥...
सखी हम बंसी क्यों न भए। अधर सुधा-रस निस-दिन पीवत प्रीतम रंग रए। कबहुँक कर में, कबहुँक कटि में, कबहूँ अधर धरे। सब ब्रज-जन-मन हरत रहति नित कुंजन माँझ खरे।...
बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी। सुनत श्रवन मन थकित भयो अरु मति गति जाति भजी। सात सुरन अरु तीन ग्राम सों पिय के हाथ सजी। ’हरीचंद’ औरहु सुधि मोही जबही अधर तजी॥...
रहैं क्यौं एक म्यान असि दोय। जिन नैनन मैं हरि-रस छायो, तेहि क्यौं भावै कोय। जा तन मन मैं राहि रहै मोहन, तहाँ ग्यान क्यौं आवै। चाहो जितनी बात प्रबोधो, ह्याँ को जो पतिआवै।...
हरि-सिर बाँकी बिराजै। बाँको लाल जमुन तट ठाढ़ो बाँकी मुरली बाजै। बाँकी चपला चमकि रही नभ बाँको बादल गाजै। ’हरीचंद’ राधा जू की छबि लखि रति मति गति भाजै॥...
काल परे कोस चलि चलि थक गए पाय, सुख के कसाले परे ताले परे नस के। रोय रोय नैनन में हाले परे जाले परे, मदन के पाले परे प्रान पर-बस के।...
लहौ सुख सब विधि भारतवासी। विद्या कला जगत की सीखो, तजि आलस की फाँसी। अपने देश, धरम, कुल समझो, छोड वृत्ति निज दासी। पंचपीर की भगति छोडि, होवहु हरिचरन उपासी।...
हमहु सब जानति लोक की चालनि, क्यौं इतनौ बतरावति हौ। हित जामै हमारो बनै सो करौ, सखियाँ तुम मेरी कहावती हौ॥ 'हरिचंद जु' जामै न लाभ कछु, हमै बातनि क्यों बहरावति हौ। सजनी मन हाथ हमारे नहीं, तुम कौन कों का समुझावति हौ॥...
इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ, तासों सदा व्याकुल बिकट अकुलायँगी। प्यारे 'हरिचंद जूं' की बीती जानि औध, प्रान चाहते चले पै ये तो संग ना समायँगी।...
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।...
ऊधो जो अनेक मन होते तो इक श्याम-सुन्दर को देते, इक लै जोग संजोते। एक सों सब गृह कारज करते, एक सों धरते ध्यान। एक सों श्याम रंग रंगते, तजि लोक लाज कुल कान।...
नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक सी सोहति। बिच-बिच छहरति बूंद मध्य मुक्ता मनि पोहति॥ लोल लहर लहि पवन एक पै इक इम आवत । जिमि नर-गन मन बिबिध मनोरथ करत मिटावत॥...