आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया।
ऐ फ़लक क्या-क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया।
बाग़बाँ है चार दिन की बाग़े आलम में बहार।
फूल सब मुरझा गए खाली बियाबाँ रह गया।
इतना एहसाँ और कर लिल्लाह ऐ दस्ते जनूँ।
बाक़ी गर्दन में फ़कत तारे गिरेबाँ रह गया।
याद आई जब तुम्हारे रूप रौशन की चमक।
मैं सरासर सूरते आईना हैराँ रह गया।
ले चले दो फूल भी इस बाग़े आलम से न हम।
वक़्त रेहलत हैफ़ है खाली हि दामाँ रह गया।
मर गए हम पर न आए तुम ख़बर को ऐ सनम।
हौसला सब दिल का दिल ही में मेरी जाँ रह गया।
नातवानी ने दिखाया ज़ोर अपना ऐ 'रसा'।
सूरते नक्शे क़दम मैं बस नुमायाँ रह गया।