बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी
बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी। सुनत श्रवन मन थकित भयो अरु मति गति जाति भजी। सात सुरन अरु तीन ग्राम सों पिय के हाथ सजी। ’हरीचंद’ औरहु सुधि मोही जबही अधर तजी॥

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