मुकरियाँ
सीटी देकर पास बुलावै। रुपया ले तो निकट बिठावै ॥ लै भागै मोहि खेलहिं खेल। क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि रेल ॥ सतएँ-अठएँ मा घर आवै। तरह-तरह की बात सुनावै ॥ घर बैठा ही जोड़ै तार। क्यों सखि सज्जन, नहीं अखबार ॥

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