सुनौ सखि बाजत है मुरली
सुनौ सखि बाजत है मुरली। जाके नेंक सुनत ही हिअ में उपजत बिरह-कली। जड़ सम भए सकल नर, खग, मृग, लागत श्रवन भली। ’हरीचंद’ की मति रति गति सब धारत अधर छली॥

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