रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं

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