हरि-सिर बाँकी बिराजै
हरि-सिर बाँकी बिराजै। बाँको लाल जमुन तट ठाढ़ो बाँकी मुरली बाजै। बाँकी चपला चमकि रही नभ बाँको बादल गाजै। ’हरीचंद’ राधा जू की छबि लखि रति मति गति भाजै॥

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