ऊधो जो अनेक मन होते
ऊधो जो अनेक मन होते तो इक श्याम-सुन्दर को देते, इक लै जोग संजोते। एक सों सब गृह कारज करते, एक सों धरते ध्यान। एक सों श्याम रंग रंगते, तजि लोक लाज कुल कान। को जप करै जोग को साधै, को पुनि मूँदे नैन। हिए एक रस श्याम मनोहर, मोहन कोटिक मैन। ह्याँ तो हुतो एक ही मन, सो हरि लै गये चुराई। 'हरिचंद' कौउ और खोजि कै, जोग सिखावहु जाई॥

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