फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल --अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !...
सरल स्वभाव सदैव, सुधीजन संकटमोचन व्यंग्य बाण के धनी, रूढ़ि-राच्छसी निसूदन अपने युग की कला और संस्कृति के लोचन फूँक गए हो पुतले-पुतले में नव-जीवन...
क्षुब्ध गंगा की तरंगों के दुसह आघात... शोख पुरवइया हवा की थपकियों के स्पर्श... खा रही है किशोरों की लाश... --हाय गांधी घाट !...
कि इतने में आ पहुँचा एक वृद्ध ब्राह्मण, लकुटी वह टेक उठाकर कंपित दहिना हाथ लगा कहने जय हो गणराज...
कैसे यह सब तू इतनी जल्दी भूल गया? ज़ालिम, क्यो मुझसे पहले तू ही झूल गया? आ, देख तो जा, तेरा यह अग्रज रोता है! यम के फंदों में इतना क्या सचमुच आकर्षण होता है...
छतरी वाला जाल छोड़कर अरे, हवाई डाल छोड़कर एक बंदरिया कूदी धम से बोली तुम से, बोली हम से,...
ख़ून-पसीना किया बाप ने एक, जुटाई फीस आँख निकल आई पढ़-पढ़के, नम्बर पाए तीस शिक्षा मंत्री ने सिनेट से कहा--"अजी शाबाश ! सोना हो जाता हराम यदि ज़्यादा होते पास"...
अभी-अभी उस दिन मिनिस्टर आए थे बत्तीसी दिखलाई थी, वादे दुहराए थे भाखा लटपटाई थी, नैन शरमाए थे छपा हुआ भाषण भी पढ़ नहीं पाए थे...
अब तक भी हम हैं अस्त-व्यस्त मुदित-मुख निगड़ित चरण-हस्त उठ-उठकर भीतर से कण्ठों में टकराता है हृदयोद्गार...
हाथ लगे आज पहली बार तीन सर्कुलर, साइक्लोस्टाइलवाले UNA द्वारा प्रचारित पहली बार आज लगे हाथ...
यहीं धुआँ मैं ढूँढ़ रहा था यही आग मैं खोज रहा था यही गंध थी मुझे चाहिए बारूदी छर्रें की खुशबू!...
रंग-बिरंगी खिली-अधखिली किसिम-किसिम की गंधों-स्वादों वाली ये मंजरियाँ तरुण आम की डाल-डाल टहनी-टहनी पर झूम रही हैं......
बाल ठाकरे ! बाल ठाकरे ! कैसे फ़ासिस्टी प्रभुओं की -- गला रहा है दाल ठाकरे ! अबे सँभल जा, वो पहुँचा बाल ठाकरे !...
ख़ूब सज रहे आगे-आगे पंडे सरों पर लिए गैस के हंडे बड़े-बड़े रथ, बड़ी गाड़ियाँ, बड़े-बड़े हैं झंडे बाँहों में ताबीज़ें चमकीं, चमके काले गंडे...
सत्य को लकवा मार गया है वह लंबे काठ की तरह पड़ा रहता है सारा दिन, सारी रात वह फटी–फटी आँखों से...
लहरों की थाप है मन के मृदंग पर बेतवा-किनारे गीतों में फुसफुस है गीत के संग पर बेतवा-किनारे...
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर--...
अभी-अभी हटी है मुसीबत के काले बादलों की छाया अभी-अभी आ गयी-- रिझाने, दमित इच्छाओं की रंगीन माया...
बजरंगी हूँ नहीं कि निज उर चीर तुम्हें दरसाऊँ ! रस-वस का लवलेश नहीं है, नाहक ही क्यों तरसाऊँ ? सूख गया है हिया किसी को किस प्रकार सरसाऊँ ? तुम्हीं बताओ मीत कि मै कैसे अमरित बरसाऊँ ?...
इन सलाखों से टिकाकर भाल सोचता ही रहूँगा चिरकाल और भी तो पकेंगे कुछ बाल जाने किस की / जाने किस की...
सीधे-सादे शब्द हैं, भाव बडे ही गूढ़ अन्न-पचीसी घोख ले, अर्थ जान ले मूढ़ कबिरा खड़ा बाज़ार में, लिया लुकाठी हाथ बन्दा क्या घबरायेगा, जनता देगी साथ...
बरफ़ पड़ी है सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है सजे-सजाए बंगले होंगे सौ दो सौ चाहे दो-एक हज़ार...
105 साल की उम्र होगी उसकी जाने किस दुर्घटना में आधी-आधी कटी थीं बाँहें झुर्रियों भरा गन्दुमी सूरत का चेहरा...
शासक बदले, झंडा बदला, तीस साल के बाद नेहरू-शास्त्री और इन्दिरा हमें रहेंगे याद जनता बदली, नेता बदले तीस साल के बाद बदला समर, विजेता बदले तीस साल के बाद...
देवि, अब तो कटें बंधन पाप के लाइए, मैं चरण चूमूँ आपके जिद निभाई, डग बढ़ाए नाप के लाइए, मैं चरण चूमूँ आपके...