भगतसिंह
अच्छा किया तुमने भगतसिंह, गुजर गये तुम्हारी शहादत के वर्ष पचास मगर बहुजन समाज की अब तक पूरी हुई न आस तुमने कितना भला चाहा था तुमने किनका संग-साथ निबाहा था क्या वे यही लोग थे— गद्दार, जनद्वेषी अहसान फरामोश ? हकूमत की पीनक में बदहोश ? क्या वे यही लोग थे, तुमने इन्हीं का भला चाहा था ? भगतसिंह, तुम्हारी वे कामरेड क्या लुच्चे थे, लवार थे ? इन्हीं की तरह क्या वे आप पब्लिक की गर्दन पे सवार थे ? अपनी कुर्सी बचाने की खातिर अपनी जान माल की हिफाजत में क्या तुम्हारे कामरेड इन्हीं की तरह कातिलों से समझौता करते ? क्या वे इन्हीं की तरह अपना थूक चाट-चाट कर मरते ? हमने तुम्हारी वर्षगाँठ को भी धंधा बना लिया है, भगतसिंह हमने तुम्हारी प्रतिमा को भी कुर्बानी का प्रमाण पत्र थामे रहने के लिए भली भाँति मना लिया है ! भगतसिंह, दर-असल, हम बड़े पाजी हैं तुम्हरी यादों के एक-एक निशान हम तानाशाहों के हाथ बेचने को राजी हैं दस-पाँच ही बुजुर्ग शेष बचे हैं वे तुम्हारे नाम का कीर्तन करते हुए यहाँ वहाँ दिखाई दे जाते हैं वे उनके साथ शहीद स्मारक समारोहों के अगल-बगल मंचस्थ होते हैं उन्हीं के साथ जिनकी जेलों के अन्दर हजार-हजार तरुण विप्लवी नरक यातना भोग रहे हैं और वे उनके साथ भी शहीद-स्मारक-समारोहें में अगल-बगल मंचस्थ होते हैं जिनकी फैक्टरियों के अन्दर-बाहर श्रमिकों का निरंतर बध होता है भगतसिंह, क्या वे सचमुच तुम्हारे साथी थे ? नहीं, नहीं, प्यारे भगतसिंह, यह झूठ है ! ऐसा हो ही नहीं सकता कि तुम्हारा कोई साथी इन मिनिस्टरों से, इन धनकुबेरों से हाथ मिलाये ! दरअसल वे कोई और लोग हैं उनरी जर्जर काया के अन्दर निश्चय ही देश-द्रोही-जनद्रोही दुष्टात्मा प्रवेश कर गयी है भगतसिंह, अच्छा हुआ तुम न रहे ! अच्छा हुआ, फाँसी के फन्दे पर झूल गये तुम ? ठीक वक्त पर शहीद हो गये, अच्छा किया तुमने बहोऽऽत अच्छा ! बहोऽऽत अच्छा ! !

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