फिसल रही चांदनी
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर-- चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी-- अब मगर किस कदर संभल रही चाँदनी पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी वो देखो, सामने पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी

Read Next