बन्दूँ, पद सुन्दर तव
बन्दूँ, पद सुंदर तव, छंद नवल स्वर-गौरव । जननि, जनक-जननि-जननि, जन्मभूमि-भाषे ! जागो, नव अम्बर-भर, ज्योतिस्तर-वासे ! उठे स्वरोर्मियों-मुखर दिककुमारिका-पिक-रव । दृग-दृग को रंजित कर अंजन भर दो भर-- बिंधे प्राण पंचबाण के भी, परिचय शर । दृग-दृग की बँधी सुछबि बाँधें सचराचर भव !

Read Next