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गिनो न मेरी श्वास, छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान? भूलो ऐ इतिहास, खरीदे हुए विश्व-ईमान !!...

मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं गरज में पुस्र्षार्थ उठता, बरस में कस्र्णा उतरती उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृङ्गर करती...

सन्ध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं सूरज की सौ-सौ बात नहीं भाती मुझको बोल-बोल में बोल उठी मन की चिड़िया नभ के ऊँचे पर उड़ जाना है भला-भला!...

फुंकरण कर, रे समय के साँप कुंडली मत मार, अपने-आप। सूर्य की किरणों झरी सी यह मेरी सी,...

हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया। सपना है, जादू है, छल है ऐसा पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा, मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।...

शिखर शिखारियों मे मत रोको, उसको दौड़ लखो मत टोको, लौटे ? यह न सधेगा रुकना दौड़, प्रगट होना, फ़िर छुपना,...

उस प्रभात, तू बात न माने, तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं पर न वहाँ तेरी छवि पाई,...

बोल तो किसके लिए मैं गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ? प्राणों की मसोस, गीतों की- कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं,...

गगन पर दो सितारे: एक तुम हो, धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो, ‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो, हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो, ...

जागना अपराध! इस विजन-वन गोद में सखि, मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि, विष-प्रहार-प्रमोद में सखि,...

तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! भूलती-सी जवानी नई हो उठी, भूलती-सी कहानी नई हो उठी, जिस दिवस प्राण में नेह बंसी बजी,...

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं। चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं...

समय के समर्थ अश्व मान लो आज बन्धु! चार पाँव ही चलो। छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।।...

ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में अन्धकार का अमित कोष भर आया फैली व्याली में ख़ाली में उनका निवास है, हँसते हैं, मुसकाता हूँ मैं ख़ाली में कितने खुलते हो, आँखें भर-भर लाता हूँ मैं...

भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो,...

यह किसका मन डोला? मृदुल पुतलियों के उछाल पर, पलकों के हिलते तमाल पर, नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर,...

नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी। उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते निशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते।...

तुम मन्द चलो, ध्वनि के खतरे बिखरे मग में- तुम मन्द चलो। सूझों का पहिन कलेवर-सा,...

गाली में गरिमा घोल-घोल क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल कितने मीठे, कितने प्यारे अर्पण के अनजाने विरोध...

चलो छिया-छी हो अन्तर में! तुम चन्दा मैं रात सुहागन चमक-चमक उट्ठें आँगन में...

साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई! तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती दूधिया चाँदनी साँवली हो गई!...

यह अमर निशानी किसकी है? बाहर से जी, जी से बाहर- तक, आनी-जानी किसकी है? दिल से, आँखों से, गालों तक-...

आज नयन के बँगले में संकेत पाहुने आये री सखि! जी से उठे कसक पर बैठे...

वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है गूँजते हों गान,गिरते हों अमित अभिमान तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है।...

मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! उस सीमा-रेखा पर जिसके ओर न छोर निशानी; मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !...

मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया कुछ नीले कुछ श्वेत गगन पर हरे-हरे घन श्यामल वन पर द्रुत असीम उद्दण्ड पवन पर ...

ये वृक्षों में उगे परिन्दे पंखुड़ि-पंखुड़ि पंख लिये अग जग में अपनी सुगन्धित का दूर-पास विस्तार किये।...

मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक! रागें हैं लाचारी मेरी,...

ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा मेरी सुरत बावली बोली- उतर न सके प्राण सपनों से, मुझे एक सपने में ले ले।...

क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में? नीली भूमि हरी हो आई इस किरणों के ज्वार में !...

जीवन, यह मौलिक महमानी! खट्टा, मीठा, कटुक, केसला कितने रस, कैसी गुण-खानी हर अनुभूति अतृप्ति-दान में...

इस तरह ढक्कन लगाया रात ने इस तरफ़ या उस तरफ़ कोई न झाँके। बुझ गया सूर्य बुझ गया चाँद, तस्र् ओट लिये...

उठ महान ! तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया? प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण् का पट क्यों खेंच दिया?...

चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ। धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें,...

पगली तेरा ठाट ! किया है रतनाम्बर परिधान अपने काबू नहीं, और यह सत्याचरण विधान !...

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें। लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में...

सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी, यों न छका, धीरे-धीरे ! फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ, री, न थका, धीरे-धीरे !...

मैं अपने से डरती हूँ सखि ! पल पर पल चढ़ते जाते हैं, पद-आहट बिन, रो! चुपचाप बिना बुलाये आते हैं दिन,...

क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो?...

मत व्यर्थ पुकारे शूल-शूल, कह फूल-फूल, सह फूल-फूल। हरि को ही-तल में बन्द किये, केहरि से कह नख हूल-हूल।...