मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक! रागें हैं लाचारी मेरी, तानें बान तुम्हारी मेरी, इन रंगीन मृतक खंडों पर, अमृत-रस ढुलका दो मालिक! मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! जब मेरा अलगोजा बोले, बल का मणिधर, स्र्ख रख डोले, खोले श्याम-कुण्डली विष को पथ-भूलना सिखा दो मालिक! मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! कठिन पराजय है यह मेरी छवि न उतर पाई प्रिय तेरी मेरी तूली को रस में भर, तुम भूलना सिखा दो मालिक! मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! प्रहर-प्रहर की लहर-लहर पर तुम लालिमा जगा दो मालिक! मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!

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