यौवन का पागलपन
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया। सपना है, जादू है, छल है ऐसा पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा, मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा। यह गुदगुदी, यही बीमारी, मन हुलसावे, छीजे काया। हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया। वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर, वह आया सपने में, मन में, उठकर, वह आया साँसों में से रुक-रुककर। हो न पुरानी, नई उठे फिर कैसी कठिन मोहनी माया! हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

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