जागना अपराध
जागना अपराध! इस विजन-वन गोद में सखि, मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि, विष-प्रहार-प्रमोद में सखि, मृदुल भावों स्नेह दावों अश्रु के अगणित अभावों का शिकारी- आ गया विध व्याध; जागना अपराध! बंक वाली, भौंह काली, मौत, यह अमरत्व ढाली, कस्र्ण धन-सी, तरल घन -सी सिसकियों के सघन वन-सी, श्याम-सी, ताजे, कटे-से, खेत-सी असहाय, कौन पूछे? पुस्र्ष या पशु आय चाहे जाय, खोलती सी शाप, कसकर बाँधती वरदान- पाप में- कुछ आप खोती आप में- कुछ मान। ध्यान में, घुन में, हिये में, घाव में, शर में, आँख मूँदें, ले रही विष को- अमृत के भाव! अचल पलक, अचंचला पुतली युगों के बीच, दबी-सी, उन तरल बूँदों से कलेजा सींच, खूब अपने से लपेट-लपेट परम अभाव, चाव से बोली, प्रलय की साध- जागना अपराध!

Read Next