इस तरह ढक्कन लगाया रात ने
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने इस तरफ़ या उस तरफ़ कोई न झाँके। बुझ गया सूर्य बुझ गया चाँद, तस्र् ओट लिये गगन भागता है तारों की मोट लिये! आगे-पीछे,ऊपर-नीचे अग-जग में तुम हुए अकेले छोड़ चली पहचान, पुष्पझर रहे गंधवाही अलबेले। ये प्रकाश के मरण-चिन्ह तारे इनमें कितना यौवन है? गिरि-कंदर पर, उजड़े घर पर घूम रहे नि:शंक मगन हैं। घूम रही एकाकिनि वसुधा जग पर एकाकी तम छाया कलियाँ किन्तु निहाल हो उठीं तू उनमें चुप-चुप भर आया मुँह धो-धोकर दूब बुलाती चरणों में छूना उकसाती साँस मनोहर आती-जाती मधु-संदेशे भर-भर लाती।

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