यह किसका मन डोला
यह किसका मन डोला? मृदुल पुतलियों के उछाल पर, पलकों के हिलते तमाल पर, नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर, कौन लिख रहा व्यथा कथा? किसका धीरज `हाँ' बोला? किस पर बरस पड़ीं यह घड़ियाँ यह किसका मन डोला? कस्र्णा के उलझे तारों से, विवश बिखरती मनुहारों से, आशा के टूटे द्वारों से- झाँक-झाँककर, तरल शाप में- किसने यों वर घोला कैसे काले दाग पड़ गये! यह किसका मन डोला? फूटे क्यों अभाव के छाले, पड़ने लगे ललक के लाले, यह कैसे सुहाग पर ताले! अरी मधुरिमा पनघट पर यह- घट का बंधन खोला? गुन की फाँसी टूटी लखकर यह किसका मन डोला? अंधकार के श्याम तार पर, पुतली का वैभव निखारकर, वेणी की गाँठें सँवारकर, चाँद और तम में प्रिय कैसा- यह रिश्ता मुँह-बोला? वेणु और वेणी में झगड़ा यह किसका मन डोला? बेचारा गुलाब था चटका उससे भूमि-कम्प का झटका लेखा, और सजनि घट-घट का! यह धीरज, सतपुड़ा शिखर- सा स्थिर, हो गया हिंडोला, फूलों के रेशे की फाँसी यह किसका मन डोला? एक आँख में सावन छाया, दूजी में भादों भर आया घड़ी झड़ी थी, झड़ी घड़ी थी गरजन, बरसन, पंकिल, मलजल, छुपा `सुवर्ण खटोला' रो-रो खोया चाँद हाय री? यह किसका मन डोला? मैं बरसी तो बाढ़ मुझी में? दीखे आँखों, दूखे जी में यह दूरी करनी, कथनी में दैव, स्नेह के अन्तराल से गरल गले चढ़ बोला मैं साँसों के पद सुहला ली यह किसका मन डोला?

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