गाली में गरिमा घोल-घोल
गाली में गरिमा घोल-घोल क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल कितने मीठे, कितने प्यारे अर्पण के अनजाने विरोध कैसे नारद के भक्ति-सूत्र आ गये कुंज-वन शोध-शोध! हिल उठे झूलने भरे झोल गाली में गरिमा घोल-घोल। जब बेढंगे हो उठे द्वार जब बे काबू हो उठा ज्वार इसने जिस दिन घनश्याम कहा वह बोल उठा परवर-दिगार। मणियों का भी क्या बने मोल। गाली में गरिमा घोल-घोल। ये बोले इनका मृदुल हास्य वे कहें कि उनके मृदुल बोल भूगोल चुटकियाँ देता है वह नाच-नाच उट्टा खगोल। कुछ तो अपने फरफन्द खोल गाली में गरिमा घोल-घोल।

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