चलो छिया-छी हो अन्तर में
चलो छिया-छी हो अन्तर में! तुम चन्दा मैं रात सुहागन चमक-चमक उट्ठें आँगन में चलो छिया-छी हो अन्तर में! बिखर-बिखर उट्ठो, मेरे धन, भर काले अन्तस पर कन-कन, श्याम-गौर का अर्थ समझ लें जगत पुतलियाँ शून्य प्रहर में चलो छिया-छी हो अन्तर में! किरनों के भुज, ओ अनगिन कर मेलो, मेरे काले जी पर उमग-उमग उट्ठे रहस्य, गोरी बाँहों का श्याम सुन्दर में चलो छिया-छी हो अन्तर में! मत देखो, चमकीली किरनो जग को, ओ चाँदी के साजन! कहीं चाँदनी मत मिल जावे जग-यौवन की लहर-लहर में चलो छिया-छी हो अन्तर में! चाहों-सी, आहों-सी, मनु- हारों-सी, मैं हूँ श्यामल-श्यामल बिना हाथ आये छुप जाते हो, क्यों! प्रिय किसके मंदिर में चलो छिया-छी हो अन्तर में! कोटि कोटि दृग! मैं जगमग जो- हूँ काले स्वर, काले क्षण गिन, ओ उज्ज्वल श्रम कुछ छू दो पटरानी को तुम अमर उभर में चलो छिया-छी हो अन्तर में! चमकीले किरनीले शस्त्रों काट रहे तम श्यामल तिल-तिल ऊषा का मरघट साजोगे? यही लिख सके चार पहर में? चलो छिया-छी हो अन्तर में! ये अंगारे, कहते आये ये जी के टुकडे, ये तारे `आज मिलोगे’, `आज मिलोगे', पर हम मिलें न दुनिया-भर में चलो छिया-छी हो अन्तर में!

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