मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! उस सीमा-रेखा पर जिसके ओर न छोर निशानी; मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! घास-पात से बनी वहीं मेरी कुटिया मस्तानी, कुटिया का राजा ही बन रहता कुटिया की रानी ! मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! राज-मार्ग से परे, दूर, पर पगडंडी को छू कर अश्रु-देश के भूपति की है बनी जहाँ रजधानी । मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! आँखों में दिलवर आता है, सैन-नसैनी चढ़कर, पलक बाँध पुतली में झूले देती कस्र्ण कहानी। मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! प्रीति-पिछौरी भीगा करती पथ जोहा करती हूँ, जहाँ गवन की सजनि रमन के हाथों खड़ी बिकानी। मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! दो प्राणों में मचे न माधव बलि की आँख मिचौनी, जहाँ काल से कभी चुराई जाती नहीं जवानी। मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! भोजन है उल्लास, जहाँ आँखों का पानी, पानी! पुतली परम बिछौना है ओढ़नी पिया की बानी। मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! प्रान-दाँव की कुंज-गली है, गो-गन बीचों बैठी, एक अभागिन बनी श्याम धन बनकर राधारानी। मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! सोते हैं सपने, ओ पंथी ! मत चल, मत चल, मत चल, नजर लगे मत, मिट मत जाये साँसों की नादानी। मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

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