दूबों के दरबार में
क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में? नीली भूमि हरी हो आई इस किरणों के ज्वार में ! क्या देखें तरुओं को उनके फूल लाल अंगारे हैं; बन के विजन भिखारी ने वसुधा में हाथ पसारे हैं। नक्शा उतर गया है, बेलों की अलमस्त जवानी का युद्ध ठना, मोती की लड़ियों से दूबों के पानी का! तुम न नृत्य कर उठो मयूरी, दूबों की हरियाली पर; हंस तरस खाएँ उस मुक्ता बोने वाले माली पर! ऊँचाई यों फिसल पड़ी है नीचाई के प्यार में! क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में?

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