वह कवि था, कवियों में रवि था
वह कवि था, कवियों में रवि था मन से पंकज, तन से पवि था वह अपने युग का युगपति था गति के पार गई वह गति था वह मानव का मानी स्वर था कालजयी वह धार प्रखर था वह जन के जीवन का दल था वह आलोकित नेह नवल था वह न रहा युग मौन हो गया वह न रहा छवि गान सो गया अब किरणों की माल म्लान है खंडित फूलों की कमान है यह भी क्या कटु विधान है पा न सका कवि मान पान है दुर्मुख अंधों का शासन है कनबहरों का सिंहासन है

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