बसंत में
सिर से पैर तक फूल-फूल हो गई उसकी देह, नाचते-नाचते हवा का बसंती नाच। हर्ष का ढिंढोरा पीटते-पीटते, हरहराते रहे काल के कगार पर खड़े पेड़। तरंगित, उफनाती-गाती रही धूप में धुपाई नदी काव्यातुर भाव से।

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