देर हो गई है दिवाकर को गए अदृश्य में
विवर्ण हो गया है सवर्ण तट पर खड़ा
पूर्व का ऎरावत
निकट आ ही गया है बरौनियों से बेधता
विकट अंधकार
खुल कर फैल ही रहा है अब
सविस्तार
श्याम केश-भार
चकित कर रहा है अब भी
जल में जीवित
डूब गए सूरज का
अपराजित प्रकाश।