बादल पंख बने
बादल पंख बने पर्वत के, फड़-फड़ फड़के, घने हुए घहराए, लेकिन उसको उठा न पाए, उड़ा न पाए, लेकर भाग न पाए, झरे- झार-बौछार मारकर, पानी होकर- बरसे पानी, उसके चारों ओर, देह पाहनी शीतलकाय हुई; यह दिन मुझको याद रहेगा वर्षा मंगल का।

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