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बरस बरस कर रुचिर रस हरे सरसता प्यास। असरस चित को अति सरस करे सरस पद-न्यास।1। भावुक जन के भाल पर हो भावुकता खौर। अरसिक पाकर रसिकता बने रसिक सिरमौर।2।...

ओढ़ काली चादर आई। देख कर के मुझ को रोती। पड़ी उस पर दुख की छाया। रात कालापन क्यों खोती।1।...

हमारे मोती के दाने। भला किसने हैं पहचाने। लाख माँगें पर माँगें कब। मोल मिलते हैं मनमाने।1।...

नहीं दिन को पड़ता है चैन। नहीं काटे कटती है रात। बरसता है आँखों से नीर। सूखता जाता है सब गात।1।...

जब कि पटरी ही नहीं है बैठती। तब पटाये जाति से कैसे पटे। वे चले हैं कान सबका काटने। देस की है नाक कटती तो कटे।1।...

गईं चरने कितनी आँखें। बँधी है बहुतों पर पट्टी। अधखुली आँखें क्यों खुलतीं। बनी हैं धोखे की टट्टी।1।...

श्याम घन में है किसकी झलक। कौन रहता है रस से भरा। लुभा लेती है धरती किसे। दुपट्टा ओढ़ ओढ़ कर हरा।1।...

राह पर उसको लगाना चाहिए। जाति सोती है जगाना चाहिए।1। हम रहेंगे यों बिगड़ते कब तलक। बात बिगड़ी अब बनाना चाहिए।2।...

न मेरी बात सुनते हैं न अपनी वे सुनाते हैं। न जाने चाहते क्या हैं। न जाने क्यों सताते हैं।1।...

कह सका कौन पेट की बात। भेद कोई भी सका न खोल। कौन अपने मतलब को भूल। किसी के जी को सका टटोल।1।...

चन्दा मामा दौड़े आओ, दूध कटोरा भर कर लाओ । उसे प्यार से मुझे पिलाओ, मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ ।...

क्या हो गया, समय क्यों, बे ढंग रंग लाया। क्यों घर उजड़ रहा है, मेरा बसा बसाया।1। सुन्दर सजे फबीले, थे फूल जिस जगह पर।...

आ री नींद, लाल को आ जा। उसको करके प्यार सुला जा।। तुझे लाल हैं ललक बुलाते। अपनी आँखों पर बिठलाते।।...

बरस जाये बादल मोती। या गिराये उन पर ओले। कीच में उन्हें डाल दे या। सुधा जैसे जल से धो ले।1।...

कभी है नया जाल बिछता। कभी फंदे हैं पड़ जाते। कभी कोई कमान खिंचती। तीर पर तीर कभी खाते।1।...

मर रहा है कोई मुझ पर। कब भला यह जी में आया। थक गये पी पी कहते हम। पर कहाँ पी पसीज पाया।1।...

बन गये फूलों से काँटे। आम से मीठे कड़वे फल। बलाएँ लगीं बला लेने। चढ़ाई हमने वह बोतल।1।...

किसी की ही सुनता कैसे। सभी की जो सुन पाता है। एक का वह होगा कैसे। जगत से जिसका नाता है।1।...

साँवला कोई हो तो क्या। अगर हो ढंगों में ढाला। करेगा क्या गोरा मुखड़ा। जो किसी का दिल हो काला।1।...

रँगीली तितली पर, जिसको। रंग दिखलाना भाता है। घूमने वाले भौंरों पर। भाँवरे जो भर जाता है।1।...

आँख का आँसू ढलकता देख कर। जी तड़प करके हमारा रह गया। क्या गया मोती किसी का है बिखर। या हुआ पैदा रतन कोई नया।1।...

किसे खोजने निकल पड़ी हो। जाती हो तुम कहाँ चली। ढली रंगतों में हो किसकी। तुम्हें छल गया कौन छली।।1।।...

हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। ...

सरस भाव मन्दार सुमन से समधिक हो हो सौरभ धाम। नन्दन बन अभिराम लोक अभिनन्दन रच मानस आराम।...

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।...

है विद्यालय वही जो परम मंगलमय हो। बरविचार आकलित अलौकिक कीर्ति निलय हो। भावुकता बर वदन सुविकसित जिससे होवे। जिसकी शुचिता प्रीति वेलि प्रति उर में बोवे।...

क्यों आज सूरज की चमक यों है निराली हो रही। क्यों आज दिन आनन्द की धारा धरातल में बही। क्यों हैं चहक चिड़िया रहीं क्यों फूल हैं यों खिल रहे। क्यों जी हरा कर पेड़ के पत्तो हरे हैं हिल रहे।1।...

दिवस का अवसान समीप था गगन था कुछ लोहित हो चला तरू–शिखा पर थी अब राजती कमलिनी–कुल–वल्लभ की प्रभा...

क्या चमकीले तारे हैं, बड़े अनूठे, प्यारे हैं! आँखों में बस जाते हैं, जी को बहुत लुभाते हैं!...

बातें रख रख बात बात में बात बनावें। रंग बदल कर नये नये बहुरंग दिखावें। कर चतुराई परम-चतुर नेता कहलावें। मीठे मीठे वचन बोल बहुधा बहलावें।...

जो बहुत बनते हैं उनके पास से, चाह होती है कि कैसे टलें। जो मिलें जी खोलकर उनके यहाँ चाहता है कि सर के बल चलें॥...

सज्जनो! देखिए, निज काम बनाना होगा। जाति-भाषा के लिए योग कमाना होगा।1। सामने आके उमग कर के बड़े बीरों लौं। मान हिन्दी का बढ़ा आन निभाना होगा।2।...

क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता। बिन कहे भी रहा नहीं जाता।1। बे तरह दुख रहा कलेजा है। दर्द अब तो सहा नहीं जाता।2।...

पोर पोर में है भरी तोर मोर की ही बान मुँह चोर बने आन बान छोड़ बैठी है। कैसे भला बार बार मुँह की न खाते रहें सारी मरदानगी ही मुँह मोड़ बैठी है।...

सखी ! बादल थे नभ में छाये बदला था रंग समय का थी प्रकृति भरी करूणा में...

खुला था प्रकृति-सृजन का द्वार। हो रही थी रचना रमणीय। बिरचती थी अति रुचिकर चित्र। तूलिका बिधि की बहु कमनीय।1।...

बल में विभूति में हमें कौन था पाता। था कभी हमारा यश वसुधातल गाता। फरहरा हमारा था नभ में फहराया। सिर पर सुर पुर ने था प्रसून बरसाया।...

अभी नर जनम की बजी भी बधाई। रही आँख सुधा बुधा अभी खोल पाई। समझ बूझ थी जिन दिनों हाथ आई। रही जब उपज की झलक ही दिखाई।...

कपड़े रँग कर जो न कपट का जाल बिछावे। तन पर जो न विभूति पेट के लिए लगावे। हमें चाहिए सच्चे जी वाला वह साधू। जाति देश जगहित कर जो निज जन्म बनाये।1।...

लोक को रुलाता जो था राम ने रुलाया उसे हम खल खलता के खले हैं कलपते। काँपता भुवन का कँपाने वाला उन्हें देख हम हैं बिलोक बल-वाले को बिलपते।...