प्रबोध
किसी की ही सुनता कैसे। सभी की जो सुन पाता है। एक का वह होगा कैसे। जगत से जिसका नाता है।1। उसे दो बूँदें दे देना। भला कैसे भारी होता। बहुत सा जल बरसा कर जो। ताप धरती का है खोता।2। समझ तू इतना सब पंखी। जल दिया किसका पीते हैं। पेड़ पौधो क्या पत्ते तक। जिलाये किस के जीते हैं।3। सदा तुझको प्यासा पाया। जनम तेरा यों ही बीता। कुआँ तालाबों नदियों का। क्यों नहीं पानी तू पीता।4। कौन जाने क्या बातें हैं। कहाँ पर क्यों वे अड़ती हैं। क्या नहीं स्वाती की बूँदें। चोंच में तेरे पड़ती हैं।5। चुप रहे पाती है मोती। भली है तुझ से तो सीपी। प्यास तुझ को है तो किससे। तू कहा करता है पी पी।6। सदा पिघला ही करता है। मेघ की बातें हैं जानी। और का पानी रखने को। कौन होगा पानी पानी।7। दूसरों का हित करने को। कौन है, गलता ही जाता। छोड़कर सरग के सुखों को। कौन धरती पर है आता।8। देख दुनिया का दुख कोई। न उतना कलपा घन जितना। कौन ऐसा पसीज पाया। बहा किस को आँसू इतना।9। बहुत व्याकुल बन पी पी रट। पपीहा तू क्या पाता है। तुझे वह क्यों भूलेगा जो। सभी पर रस बरसाता है।10।

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