कड़वा घूँट
जब कि पटरी ही नहीं है बैठती। तब पटाये जाति से कैसे पटे। वे चले हैं कान सबका काटने। देस की है नाक कटती तो कटे।1। मुँह बना रखते रहेंगे बात वे। जाति मुँह की खा रही है खाय तो। वे उचक तारे रहेंगे तोड़ते। देस जाता है रसातल जाय तो।2। डूब कर पानी अगर पीते नहीं। जाति का बेड़ा डुबोते किस तरह। जब निकल जी का नहीं काँटा सका। देस में काँटे न बोते किस तरह।3। लीडरी की जड़ न हिलनी चाहिए। जाति का दिल हिल रहा है तो हिले। हिन्दुओं की तो उड़ेगी धूल ही। देस मिलता धूल में है तो मिले।4। है कलेजे को पहुँच ठंढक रही। क्या करें वे, जल रहे हैं जो सगे। आग ही वे हैं उगलना चाहते। देस में है आग लगती तो लगे।5।

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