पपीहे की पिहक
मर रहा है कोई मुझ पर। कब भला यह जी में आया। थक गये पी पी कहते हम। पर कहाँ पी पसीज पाया।1। बहुत जल हैं समुद्र पाते। पहाड़ों को तर करता है। न हम ने दो बूँदें पाईं। भरे को वह भी भरता है।2। कलपता कितना है प्यासा। किस तरह के दुख सहता है। इसे कैसे वह जानेगा। जो भरा जल से रहता है।3। गरज ले बिजली चमका ले। मचा ले मनमाने ऊधम। हमें वह सब दिन तरसा ले। जिएँगे उसे देख कर हम।4। जल मिले खुले भाग सब के। हम अभागे ही हैं छँटते। प्यास से चटक गया तालू। लट गयी जीभ नाम रटते।5। जल नहीं देता तो मत दे। लेयँगे सह दुख भी सारे। निछावर सदा हुए जिस पर। वह हमें पत्थर क्यों मारे।6। जिया जग जिसका पानी पी। हमें वह क्यों है कलपाता। सूखता जाता है सब तन। जल नहीं आँखों में आता।7। प्यास कब बनी जलन जी की। बात यह सब की है जानी। हमें है जलन मिली ऐसी। बुझाता है जिसको पानी।8। न देखेंगे मुँह औरों का। पिएँगे हम विष की घूँटें। टकटकी बाँधोंगे सब दिन। क्यों न दोनों आँखें फूटें।9। दाँव पर प्राणों को रख कर। फेंकता रहता हूँ पासा। दूसरा पानी क्यों पीऊँ। स्वाति जल का मैं हूँ प्यासा।10।

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