हमें चाहिए
कपड़े रँग कर जो न कपट का जाल बिछावे। तन पर जो न विभूति पेट के लिए लगावे। हमें चाहिए सच्चे जी वाला वह साधू। जाति देश जगहित कर जो निज जन्म बनाये।1। देशकाल को देख चले निजता नहिं खोवे। सार वस्तु को कभी पखंडों में न डुबोवे। हमें चाहिए समझ बूझ वाला वह पंडित। आँखें ऊँची रखे कूपमंडूक न होवे।2। आँखों को दे खोल, भरम का परदा टाले। जाँ का सारा मैल कान को फूँक निकाले। गुरु चाहिए हमें ठीक पारस के ऐसा। जो लोहे को कसर मिटा सोना कर डाले।3। टके के लिए धूल में न निज मान मिलावे। लोभ लहर में भूल न सुरुचि सुरीति बहावे। हमें चाहिए सरल सुबोध पुरोहित ऐसा। जो घर घर में सकल सुखों की सोत लसावे।4। करे आप भी वही और को जो सिखलावे। सधो सराहे सार वचन निज मुख पर लावे। हमें चाहिए ज्ञानमान उपदेशक ऐसा। जो तमपूरित उरों बीच वर जोत जगावे।5। जो हो राजा और प्रजा दोनों का प्यारा। जिसका बीते देश-प्रेम में जीवन सारा। देश-हितैषी हमें चाहिए अनुपम ऐसा। बहे देशहित की जिसकी नस नस में धारा।6। जिसे पराई रहन-सहन की लौ न लगी हो। जिसकी मति सब दिन निजता की रही सगी हो। हमें चाहिए परम सुजान सुधारक ऐसा। जिसकी रुचि जातीय रंग ही बीच रँगी हो।7। जिसके हों ऊँचे विचार पक्के मनसूबे। जी होवे गंभीर भीड़ के पड़े न ऊबे। हमें चाहिए आत्म-त्याग-रत ऐसा नेता। रहें जाति-हित में जिसके रोयें तक डूबे।8। बोल बोलकर बचन अमोल उमंग बढ़ावे। जन-समूह को उन्नति-पथ पर सँभल चलावे। इस प्रकार का हमें चाहिए चतुर प्रचारक। जो अचेत हो गयी जाति को सजग बनावे।9। देख सभा का रंग, ढंग से काम चलावे। पचड़ों में पड़ धूल में न सिद्धन्त मिलावे। हमें चाहिए नीति-निधान सभापति ऐसा। जो सब उलझी हुई गुत्थियों को सुलझावे।10। एँच पेच में कभी सचाई को न फँसावे। लम्बी चौड़ी बात बनाना जिसे न आवे। हमें बात का धानी चाहिए कोई ऐसा। जो कुछ मुँह से कहे वही करके दिखलावे।11। किसे असंभव कहते हैं यह समझ न पावे। देख उलझनों को चितवन पर मैल न लावे। हमें चाहिए धुन का पक्का ऐसा प्राणी। जो कर डाले उसे कि जिसमें हाथ लगावे।12। कोई जिसे टटोल न ले आँखों के सेवे। जिसके मन का भाव न मुखड़ा बतला देवे। हमें चाहिए मनुज पेट का गहरा ऐसा। जिसके जी की बात जान तन-लोम न लेवे।13। जिसके धन से खुलें समुन्नति की सब राहें। हो जावें वे काम विबुध जन जिन्हें सराहें। हमें चाहिए सुजन गाँठ का पूरा ऐसा। जो पूरी कर सके जाति की समुचित चाहें।14। ऊँच नीच का भेद त्याग सबको हित माने। चींटी पर भी कभी न अपनी भौंहें ताने। हमें चाहिए मानव ऊँचे जी का ऐसा। अपने जी सा सभी जीव का जी जो जाने।15।

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