ललना-लाभ
खुला था प्रकृति-सृजन का द्वार। हो रही थी रचना रमणीय। बिरचती थी अति रुचिकर चित्र। तूलिका बिधि की बहु कमनीय।1। रंग लाती थी हृदय-तरंग। बह रहा था चिन्ता का सोत। मंद गति से अवगति-निधि मधय। चल रहा था जग-रंजन पोत।2। चित्र-पट पर भव के उस काल। खिंच गयी एक मूर्ति अभिराम। सरलता कोमलता अवलम्ब। सरसता मय मोहक रति काम।3। उमा सी महिमा मयी महान। रमा सी रमणीयता निकेत। गिरासी गौरव गरिमावान। मानवी जीवन-ज्योति उपेत।4। अलौकिक केलि-कला-कुल कान्त। हृदय-तल सुललित लीलाधाम। मधार माता-मानस-सर्वस्व नाम था ललना लोक-ललाम।5।

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