बांछा
बरस बरस कर रुचिर रस हरे सरसता प्यास। असरस चित को अति सरस करे सरस पद-न्यास।1। भावुक जन के भाल पर हो भावुकता खौर। अरसिक पाकर रसिकता बने रसिक सिरमौर।2। मिले मधुर स्वर्गीय स्वर हों स्वर सकल रसाल। व्यंजन में वर व्यंजना हो व्यंजित सब काल।3। उक्ति अलौकिकता लहे मिले अलौकिक ओक। करे समालोकित उसे अलंकार आलोक।4। कलित भाव से बलित हो पा रुचि ललित नितान्त। कान्त करे कवितावली कविता-कामिनि-कान्त।5।

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