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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है, आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में, अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ है दिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में ।...

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर,...

गर्म पकौड़ी- ऐ गर्म पकौड़ी, तेल की भुनी नमक मिर्च की मिली,...

आज प्रथम गाई पिक पंचम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मस्त प्रवाह, कुसुम तरु फूले, बौर-बौर पर भौंरे झूले,...

अनगिनित आ गये शरण में जन, जननि- सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि! स्नेह से पंक - उर हुए पंकज मधुर, ऊर्ध्व - दृग गगन में देखते मुक्ति-मणि!...

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं हमजोली। यह आँख नहीं कुछ बोली, यह हुई श्याम की तोली,...

नर जीवन के स्वार्थ सकल बलि हों तेरे चरणों पर, माँ मेरे श्रम सिंचित सब फल। जीवन के रथ पर चढ़कर...

वह आता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,...

अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है। कहीं साँस लेते हो,...

गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे,...

नहीं जानती जो अपने को खिली हुई-- विश्व-विभव से मिली हुई,-- नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को,-- नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,...

नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली ! जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली, दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली- मली मुख-चुम्बन-रोली।...

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात की गात सँवारी। राग-पराग-कपोल किए हैं, लाल-गुलाल अमोल लिए हैं...

अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसन्त- अभी न होगा मेरा अन्त...

मरा हूँ हजार मरण पाई तब चरण-शरण। फैला जो तिमिर जाल कट-कटकर रहा काल,...

पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली, बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते, कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।...

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है, देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है। हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये, हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है।...

रँग गई पग-पग धन्य धरा,--- हुई जग जगमग मनोहरा । वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर, तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर...

वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार...

एक दिन विष्‍णुजी के पास गए नारद जी, पूछा, "मृत्‍युलोक में कौन है पुण्‍यश्‍यलोक भक्‍त तुम्‍हारा प्रधान?" विष्‍णु जी ने कहा, "एक सज्‍जन किसान है...

वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरुपम किसलयों बँधे, पिक भ्रमर-गुंज भर मुखर प्राण रच रहे सधे...

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते।...

दिवसावसान का समय- मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी, परी सी, धीरे, धीरे, धीरे...

भारति, जय, विजय करे कनक-शस्य-कमल धरे! लंका पदतल-शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल...

अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसन्त- अभी न होगा मेरा अन्त ...

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा। उन्ही बीजों को नये पर लगे, उन्ही पौधों से नया रस झिरा।...

आज प्रथम गाई पिक पञ्चम। गूंजा है मरु विपिन मनोरम। मरुत-प्रवाह, कुसुम-तरु फूले, बौर-बौर पर भौरे झूले,...

अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात ! मचलते हुए निकल आते हो; उज्जवल! घन-वन-अंधकार के साथ खेलते हो क्यों? क्या पाते हो ?...

तुम्हें खोजता था मैं, पा नहीं सका, हवा बन बहीं तुम, जब मैं थका, रुका ।...

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा। खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,...

मद - भरे ये नलिन - नयनमलीन हैं; अल्प - जल में या विकल लघु मीन हैं? या प्रतीक्षा में किसी की शर्वरी; बीत जाने पर हुये ये दीन हई?...

सह जाते हो उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, अन्तिम आशा के कानों में...

बैठ लें कुछ देर, आओ, एक पथ के पथिक-से प्रिय, अंत और अनन्त के, तम-गहन-जीवन घेर।...

तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा पत्थर, की निकलो फिर, गंगा-जल-धारा! गृह-गृह की पार्वती!...

राजे ने अपनी रखवाली की किला बनाकर रहा बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं चापलूस कितने सामन्त आए...

जागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार-...

भर देते हो बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो । मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,...

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता। तुम विमल हृदय उच्छवास और मैं कांत-कामिनी-कविता।...

वर दे, वीणावादिनि वर दे ! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे ! काट अंध-उर के बंधन-स्तर...