लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा। उन्ही बीजों को नये पर लगे, उन्ही पौधों से नया रस झिरा। उन्ही खेतों पर गये हल चले, उन्ही माथों पर गये बल पड़े, उन्ही पेड़ों पर नये फल फले, जवानी फिरी जो पानी फिरा। पुरवा हवा की नमी बढ़ी, जूही के जहाँ की लड़ी कढ़ी, सविता ने क्या कविता पढ़ी, बदला है बादलों से सिरा। जग के अपावन धुल गये, ढेले गड़ने वाले थे घुल गये, समता के दृग दोनों तुल गये, तपता गगन घन से घिरा।

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