प्राप्ति
तुम्हें खोजता था मैं, पा नहीं सका, हवा बन बहीं तुम, जब मैं थका, रुका । मुझे भर लिया तुमने गोद में, कितने चुम्बन दिये, मेरे मानव-मनोविनोद में नैसर्गिकता लिये; सूखे श्रम-सीकर वे छबि के निर्झर झरे नयनों से, शक्त शिरा‌एँ हु‌ईं रक्त-वाह ले, मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा जब थका, रुका ।

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